प्रश्नकर्ता – सुदामा जी एवं श्रवण कुमार के पिता का नाम क्या था ?
निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु – शैवागमों में उनके पिता का नाम सुधामय वर्णित है जबकि निग्रहागमों में उनके पिता का नाम दर्पकर्दम बताया गया है।
सुधामयसुतः श्रीमान् सुदामा नाम वै द्विजः।
तेन गोपीपतिः कृष्णो विद्यामभ्यसितुङ्गतः॥
(प्रकृष्टनन्दोक्तागम)
सुदामा समदृग्विप्रो दर्पकर्दमसम्भवः।
शिरोमणिर्विरक्तानां कृष्णस्य दयितः सखा॥
(निग्रहागम)
प्रथम नाम मैंने (निग्रहाचार्य ने) चेतना की विश्वावस्था में एवं द्वितीय प्रमाण तैजसावस्था में पढ़ा था। प्रथम नाम प्रचलित एवं द्वितीय नाम अप्रकाशित है। श्रवण कुमार के माता पिता का नाम परम्परा से शान्तनु एवं ज्ञानवती प्राप्त होता है। कहीं कहीं यज्ञदत्त आदि नाम भी वर्णित हैं।
भगवान् श्रीकृष्ण के जो ब्राह्मण मित्र उनसे मिलने आये थे, उनका नाम क्या था ? सुदामा या श्रीदामा ? इस विषय में अर्बुद पर्वतस्थित श्रीसर्वेश्वर रघुनाथ भगवान् के मठपति आचार्यश्री सियारामदास नैयायिक जी ने श्रीमद्भागवत की विभिन्न टीकाओं के विवेचन के द्वारा यह सिद्ध किया है कि भगवान् के ब्राह्मण मित्र का नाम श्रीदामा था। यह भी बताया कि श्रीदामा नामक दो मित्र हुए हैं, एक गोप और दूसरे ब्राह्मण अतः सुदामा शब्द श्रीदामा का ही अपभ्रंश है, मूल नाम श्रीदामा है। श्रीनैयायिक जी के विवेचन में प्रस्तुत प्रमाणों को स्वीकार करते हुए हम कुछ अन्य बातों को भी प्रस्तुत करते हैं।
शैवागमों की उपशाखा प्रकृष्टनन्दोक्तागम में कहते हैं – सुधामय ब्राह्मण के पुत्र सुदामा थे जिनके साथ श्रीकृष्ण भगवान् विद्याध्ययन हेतु गये थे।
शाक्तागमों की उपशाखा विलुप्तप्राय निग्रहागम में कहते हैं – समदर्शी ब्राह्मण सुदामा दर्पकर्दम के पुत्र थे, विरक्तों में शिरोमणि और श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र थे।
यदि श्रीनैयायिक जी यह कहें कि हम श्रीवैष्णव सम्प्रदाय से हैं अतः शैवागमों की बात हमारे सम्प्रदाय में मान्य नहीं, तो मैं यह कहूँगा कि आपने जिस श्रीधरी टीका का अवलम्बन करके अपनी बात कही है, उसके रचयिता श्रीश्रीधर स्वामीजी स्वयं गोवर्द्धन पुरी पीठ के शङ्कराचार्य बने जो श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के अन्तर्गत नहीं है। यदि यह कहा जाये कि निग्रहागमों का प्रकाशन आपकी दृष्टि में सन्दिग्ध है क्योंकि निग्रहाचार्य/निग्रहागम/निग्रहमतादि एक प्रकार से समाज के लिए नया विषय है अतः यह मेरी निजी कल्पना से प्रक्षेपित किया गया होगा, तो मैं अन्य असन्दिग्ध प्रमाण भी प्रस्तुत करता हूँ।
स्कन्दपुराण के अवन्तीखण्ड में श्रीविष्णुसहस्रनाम के अन्तर्गत भगवान् को विद्याध्ययन करने वाला, भूमिशयन करने वाला और सुदामा मित्र से युक्त बताया गया है – विद्याध्यायी भूमिशायी सुदामासुसखा सुखी। गर्ग संहिता में भी ब्राह्मण मित्र का नाम सुदामा बताया गया है –
श्रीकृष्णस्य सखा कश्चित् सुदामा नाम ब्राह्मणः।
स उवास स्वपुर्यां तु सत्या च भार्यया वृतः॥
विरक्तो धनहीनश्च वेदवेदाङ्गपारगः।
समानशीलया पत्न्या चक्रे वृत्तिमयाचिताम्॥
(गर्गसंहिता, द्वारकाखण्ड, अध्याय – २२, श्लोक – ०१-०२)
कोई सुदामा नामक ब्राह्मण श्रीकृष्ण के सखा थे जो अपनी नगरी में सत्या नाम वाली पत्नी के साथ रहते थे। वे धनहीन थे, विरक्त थे, वेदवेदाङ्ग के श्रेष्ठ वेत्ता थे। उनकी पत्नी भी वैसी ही सद्गुण वाली थीं और बिना मांगे जो मिल जाये, उसी से घर चलाते थे। (फिर लगभग श्रीमद्भागवत की प्रचलित कथा के अनुसार ही यहाँ भी सब वर्णन है, और आगे कहते हैं) –
ततः सुदामा विप्रस्तु कृष्णाय परमात्मने।
पृथुकाँस्तण्डुलान् राजन्न प्रायच्छदवाङ्मुखः॥
(गर्गसंहिता, द्वारकाखण्ड, अध्याय – २२, श्लोक – ४३)
सुदामा ब्राह्मण ने (सङ्कोचवश) परमात्मा श्रीकृष्ण को चिउड़ा नहीं दिया और मुख नीचे किये रहे। शेष कथा सामान्य ही है। यहाँ तक कि वेदों में भी वर्णन है – शमो मित्रः सुदामा च सत्याक्रूरोद्धवो दमः। यजुर्वेदीय कृष्णोपनिषत् में श्रुति कहती है – शम ही सुदामा मित्र हैं, सत्य अक्रूर हैं और दम के स्वरूप उद्धव जी हैं। भारतवर्ष के महामनीषी स्वामिश्री मधुसूदन सरस्वती जी ने शताधिक श्लोकों में आनन्दमन्दाकिनी लिखी है, उसके मङ्गलाचरण के तुरन्त पश्चात् ही अद्भुत भाव लिखते हैं –
नित्यं ब्रह्मसुरेन्द्रशङ्करमुखैर्दत्तोपहाराय ते
विस्वादास्तुषमिश्रतण्डुलकणान्विप्रः सुदामा ददौ।
तद्वद्देव निरर्थकैः कतिपयै रुक्षाक्षरैर्निर्मितां
वागीशप्रमुखस्तुतस्य भवतः कुर्यां स्तुतिं निस्त्रपः॥
हे प्रभो ! आपकी स्तुति तो ब्रह्मदेव, बृहस्पति आदि बड़े बड़े विद्वान् करते हैं, मैं भला आपकी क्या स्तुति करूँ ? फिर भी निर्लज्ज के समान स्तुति करता हूँ। कैसे ? ब्रह्मा, इन्द्र, महादेव जैसे बड़े बड़े देवता आपको दिव्य नैवेद्य का भोग लगाते हैं, फिर भी सुदामा ब्राह्मण ने आपको स्वादहीन, भूसा मिला हुआ चिउड़ा दिया तो आपने प्रेम से भोग लगाया ही था, वैसे ही हमारे द्वारा की जाने वाली कुछ निरर्थक और रूखे वचनों वाली स्तुति भी आप स्वीकार करें।
इस प्रकार हम समझते हैं कि हो सकता है, श्रीकृष्ण भगवान् के विरक्त ब्राह्मण मित्र का नाम श्रीदामा के रूप में भी वर्णित होगा, हमें आपत्ति नहीं। किन्तु प्रचलन में जो “सुदामा” नाम है, वह पूर्ण शास्त्रीय है, शुद्ध है, प्रामाणिक है। सुदामा और श्रीदामा, दोनों ही शास्त्रीय हैं किन्तु सुदामा शब्द शास्त्रीय होने के साथ ही, प्रसिद्ध और परम्पराप्राप्त भी है अतः उसका ही व्यवहार आचार्यों को करना चाहिए।
निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु
Nigrahacharya Shri Bhagavatananda Guru