यहाँ यह ध्यातव्य है कि यह ब्राह्मी काल केवल उसी महाकारण शरीर को प्रभावित करता है जिसे पितामह ब्रह्माजी ने धारण किया है। बाकी ईश्वरीय सगुण रूपों को नहीं। अब आईये, मैं बताता हूँ इस सौर काल, दिव्य काल और ब्राह्मी काल का रहस्य। आपकी सुविधा के लिए मैं इसे सौर अर्थात् मानव काल (मनुष्य के दिन रात पर आधारित वर्ष) में बदलता जाऊंगा। आधुनिक काल गणना को ही लेते हुए विषय आगे बढ़ाते हैं। कारण कि इससे समझने में सुविधा होगी। 60 सेकंड का एक मिनट, और 60 मिनट का एक घण्टा होता है। तीन घंटे का एक प्रहर/याम और आठ प्रहर/याम का एक अहोरात्र (दिनरात) होता है। ऐसे ऐसे 15 अहोरात्र के बराबर एक पक्ष (पखवाड़ा) दो पक्ष (शुक्ल और कृष्ण) मास (महीना), दो महीनों के बराबर ऋतु, तीन ऋतु के बराबर एक अयन, और दो अयन (उत्तर और दक्षिण) के बराबर एक सौर संवत्सर (वर्ष) होता है। इसे ही इडावत्सर या वत्सर भी कहा जाता है।
एक सौर वर्ष में 360 दिन होते हैं। जिसे सटीक रूप से पूरा करने के लिए एक ऐसे मास को चुना जाता है जिसमें कोई भी सूर्य संक्रांति नहीं होती। इसे ही मलमास, अधिकमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। यह हर चार वर्षों में एक बार होता है। मनुष्य के एक पक्ष बराबर पितरों का एक दिन और एक पक्ष बराबर रात होती है। अर्थात् एक सौर मास के बराबर एक पैतृक अहोरात्र होता है। मनुष्य के एक अयन (उत्तर) के बराबर देवताओं का एक दिन होता है और दूसरे अयन (दक्षिण) के बराबर रात्रि होती है। वहीं दैत्यों में इसका उल्टा होता हैं उनमें दक्षिण अयन में दिन और उत्तर अयन में रात्रि। यह दिव्य अहोरात्र कहलाता है जो हमारे 360 सौर अहोरात्र के बराबर होता है।
इस अनुसार 360 सौर/मानव वर्ष के बराबर एक दिव्य वर्ष होता है। ऐसे ऐसे 1200 दिव्य वर्ष के बराबर कलियुग की आयु है। जिसमें 1000 दिव्य वर्ष का कलियुग और प्रारम्भ तथा अंत में 100-100 वर्षों की कलिसन्धि। मानव वर्ष में गणना करने से सन्धिसमेत कलियुग की आयु 432,000 वर्ष है। ऐसे ऐसे 2400 दिव्य वर्ष के बराबर द्वापरयुग की आयु है। जिसमें 2000 दिव्य वर्ष का द्वापरयुग और प्रारम्भ तथा अंत में 200-200 वर्षों की द्वापरसन्धि। मानव वर्ष में गणना करने से सन्धिसमेत द्वापरयुग की आयु 864,000 वर्ष है। ऐसे ऐसे 3600 दिव्य वर्ष के बराबर त्रेतायुग की आयु है। जिसमें 3000 दिव्य वर्ष का त्रेतायुग और प्रारम्भ तथा अंत में 300-300 वर्षों की त्रेतासन्धि। मानव वर्ष में गणना करने से सन्धिसमेत त्रेतायुग की आयु 1,296,000 वर्ष है। ऐसे ऐसे 4800 दिव्य वर्ष के बराबर सत्ययुग की आयु है। जिसमें 4000 दिव्य वर्ष का सत्ययुग और प्रारम्भ तथा अंत में 400-400 वर्षों की सत्यसन्धि। मानव वर्ष में गणना करने से सन्धिसमेत सत्ययुग की आयु 1,728,000 वर्ष है।
इन चारों युगों के एक सम्मिलित सत्र को चतुर्युग कहते हैं जिसकी सम्मिलित आयु 12000 दिव्य वर्ष या 4,320,000 मानव वर्ष है। हर चतुर्युग की समाप्ति पर धरती पर मानवादि की सभ्यता का भीषण संहार होता है और आगामी सत्ययुग के लिए नई संशोधित व्यवस्था लायी जाती है। इसी को सौर काल के द्वारा संचालित भौतिक शरीरधारी जीवों के लिए अनुप्रलय कहा गया है। ऐसे ऐसे चतुर्युग जब 71 बार आते हैं तब एक मन्वन्तर होता है। जिसमें सत्ययुग के मान के बराबर मन्वन्तर सन्धि जोड़ने से एक मन्वन्तर की पूरी आयु निकलती है। एक मन्वन्तर में कुल 306,720,000 (71 चतुर्युग की आयु) + 1,728,000 (सत्ययुग के बराबर मन्वन्तर सन्धि) = 308,448,000 मानव वर्ष होते हैं।
प्रत्येक मन्वन्तर के अंत में एक क्षुद्रप्रलय होता है जिसमें दिव्य काल के द्वारा संचालित समस्त सूक्ष्म शरीरधारी जीवों का ब्रह्मा में विलय हो जाता है। इस क्षुद्रप्रलय का समय पूरे मन्वन्तर सन्धि तक रहता है। एक मन्वन्तर में एक इंद्र और एक मनु होता हैं । हर मन्वन्तर में स्वर्ग का देवमंत्रिमण्डल बदलता है। वर्तमान में मनु का नाम श्राद्धदेव वैवस्वत है। जो देवता इंद्र के पद पर हैं, उनका नाम पुरंदर है। अगले मन्वन्तर में दैत्यों के राजा बलि को इंद्र बनाया जायेगा तथा सूर्यपुत्र सावर्णि मनु बनेंगे। ऐसे ऐसे जब सन्धिसहित 14 मन्वन्तर बीतते हैं तो एक कल्प होता है। इस एक कल्प में मन्वन्तर, मन्वन्तर सन्धि तथा कल्प सन्धि का समय जोड़कर कुल 1000 चतुर्युग के बराबर समय होता है।
कल्प सन्धि का मान भी एक सत्ययुग के बराबर ही होता है। अतः चौदह मन्वन्तर को जोड़कर हुए 4,294,080,000 मानव वर्षों में एक कल्प सन्धि एवं चौदह मन्वतर सन्धियों के 1,728,000 × 15 = 25,920,000 वर्षों को जोड़ देने से एक कल्प की कुल आयु होती है 4,320,000,000 मानव वर्ष।
इसको एक दूसरे दृष्टिकोण से भी समझें, देखिए, तीन बातें हैं।
* एक कल्प का मान एक हज़ार चतुर्युगी के बराबर है
* एक कल्प में चौदह मन्वतर होते हैं।
* एक कल्पसन्धि एवं मन्वतर सन्धि का मान एक सत्ययुग के बराबर, 17,28,000 मानव वर्षों के बराबर होता है।
अब एक चतुर्युगी होगी 43,20,000 वर्ष की। तो एक हज़ार चतुर्युगी का मान हो जाएगा 4,32,00,00,000 वर्षों का। किन्तु हम जानते हैं कि एक मन्वतर में तो 71 चतुर्युगी ही होते हैं, एवं एक कल्प में 14 मन्वतर, तो इस प्रकार एक कल्प के मन्वतर के हिसाब से 71×14 = 994 ही चतुर्युगी होंगे। अब कुल कल्पमान तो 1000 चतुर्युगी का है, किन्तु हमें 994 चतुर्युगी ही प्राप्त हुए हैं। शेष 6 चतुर्युगी का काल हमें चौदह मन्वतर की सन्धि, एवं एक कल्प सन्धि को जोड़ने से प्राप्त होगा। एक कल्प एवं एक मन्वतर सन्धि का मान एक सत्ययुग के बराबर होता है। तो हमें 14+1 = 15 सन्धियों के लिए 15 सत्ययुग के बराबर का समय व्यवस्थित करना पड़ेगा।
पंद्रह सत्ययुग का मान 17,28,000 × 15 = 25,920,000 वर्षों का हो जाएगा। एवं हम यदि इन 25,920,000 वर्षों को चतुर्युगी के हिसाब से देखें तो 25,920,000 ÷ 43,20,000 = 6 चतुर्युगी का मान भी पूर्ण हो गया, जिसे पूर्व के 994 चतुर्युगी के साथ जोड़ देने पर कुल 1000 चतुर्युगी का एक कल्पमान प्राप्त हो जाता है।
यही एक सन्धिसहित कल्प बराबर ब्रह्मा का एक दिन और दूसरे सन्धिसहित कल्प के बराबर एक रात होती है। यही ब्राह्मी काल कहलाता है। एक कल्प के अंत के समय केवल ब्रह्मलोक रहता है। समग्र लोकों का नाश हो जाता है। यही प्रलय कहलाता है। कारण शरीरधारी समस्त जीवों का विलय ब्रह्मा में हो जाता है। इस ब्राह्मी दिनरात (8,640,000,000 मानव वर्षों) के आधार पर ब्रह्मा जी के एक वर्ष में 360 दिनरात होते हैं। एक ब्राह्म वर्ष में 3,110,400,000,000 मानव या सौर वर्ष होते हैं। इस अनुसार ब्रह्माजी की कुल आयु है 100 वर्ष यानी कि 3,110,400,000,000,000 मानव वर्षों की।
इसके बाद महाप्रलय होता है जिसमें ब्रह्माजी वापस समस्त ब्रह्माण्ड के साथ ही परब्रह्म में लीन हो जाते हैं। यही इस ब्रह्माण्ड की आयु है। यह विशाल ब्रह्माण्ड इसी ब्राह्मी कालगणना के आधार पर संचालित होता है। इस अनुसार यदि ब्रह्माजी की आयु की गणना आधुनिक काल गणना से करें तो उनकी आयु उनके अनुसार ब्राह्मी कालगणना से 50 वर्ष, 5 घंटा, 44 मिनट और लगभग 8 सेकंड है। जिसमें अभी उनके 51वें वर्ष के प्रथम दिन (श्वेतवाराह कल्प) के चौदह में से सातवें (वैवस्वत) मन्वन्तर के 71 चतुर्युगों में से 28वें चतुर्युग के कलियुग में 432,000 मानव वर्षों में से 5121वां वर्ष (2020 ई० में) चल रहा है। इससे पूर्व इस कल्प में पिछले 6 मन्वन्तर (स्वायम्भुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत एवं चाक्षुष) बीत चुके। इस वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर के आगे भी 7 अन्य सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, इंद्रसावर्णि, रुद्रसावर्णि आदि मन्वन्तर होंगे। फिर कल्पसन्धि और उसमें प्रलय। यही है इस काल का रहस्य, इस ब्रह्माण्ड का रहस्य, सनातन का महान रहस्यमय विज्ञान।
श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु
His Holiness Shri Bhagavatananda Guru