Home खण्डन मण्डन हिन्दू धर्म पर लगे वामपंथी आरोपों का उत्तर

हिन्दू धर्म पर लगे वामपंथी आरोपों का उत्तर

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प्रश्न ०३ – सभी देवी देवता हमेशा राज घरानों में ही जन्म क्यों लेते थे ? क्यों किसी भी देवी देवता ने किसी गरीब या शूद्र के यहां जन्म नहीं लिया ?
उत्तर ०३ – आप पहले तो यह स्पष्ट करें कि आप पूछना क्या चाहते हैं ? गरीब के यहां जन्म नहीं लिया, या शूद्र के यहां जन्म नहीं लिया ? क्या तात्पर्य है ? गरीब अलग है, शूद्र अलग है। गरीबी का शूद्र होने से कोई सम्बन्ध नहीं है। यहाँ ये नकली शोषण का रोना बन्द करो। सनातनी शास्त्रों में कहां लिखा है कि शूद्र को गरीब ही रहना चाहिए, शूद्र धन संग्रह नहीं कर सकता है आदि आदि ? कहीं नहीं लिखा है ऐसा। हां, यह अवश्य लिखा है कि ब्राह्मण को अकिंचन होना चाहिए, धनसंग्रह से बचना चाहिए, त्यागमय अपरिग्रही जीवन बिताना चाहिए, और इस बात के सैकड़ों प्रमाण मिलेंगे। समाज के नब्बे प्रतिशत कौशल कृत्य एवं आजीविकायें शूद्र के लिए धार्मिक रूप से आरक्षित हैं, जिन्हें यदि ब्राह्मण अपना ले तो दोषी होगा।
रही बात गरीब की, तो किसी भी वर्ण का व्यक्ति गरीब हो सकता है। धनी होना अथवा दरिद्र होना तो निजी प्रारब्ध का विषय है, इसमें शूद्र या ब्राह्मण की बात नहीं है। हमारे देश में तो हरिश्चंद्र, नल, युधिष्ठिर, सुरथ, द्युमत्सेन, आदि पुरातन चक्रवर्ती राजाओं एवं महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे बड़े बड़े शासकों ने भी अपने जीवन में कई कई बार घोर दरिद्रता एवं अभाव झेला है। हां, इसके बाद भी उन्होंने अन्यायपूर्ण तरीके से किसी शूद्र के धन को छीना नहीं।
भगवान् यूं ही कहीं सोते जागते अवतार नहीं ले लेते हैं। जगत्पिता के माता-पिता बनने के लिए सहस्रों वर्षों की अपार तपस्या एवं भक्ति लगती है। जैसे द्रोण और धरा ने तपस्या की, जैसे कश्यप और अदिति, स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा, कर्दम एवं देवहूति, दक्ष एवं प्रसूति, मेना एवं हिमालय ने तपस्या की, तब जाकर उनके घर दिव्यावतार हुए। तो भगवान् का प्राकट्य कहाँ होगा यह तो तपस्यारत भक्तों के आधार पर निश्चित होता है किंतु अवतार के बाद भगवान् अपने भक्तों के प्रति कृपा करने में भेद नहीं करते। वे विदुर, शबरी, कुब्जा, गणिका, उद्धव, व्याध, निषाद, सुदामा, सुग्रीव, अक्रूर, मोरध्वज, आदि सबों पर कृपा करते हैं। और हां, उसका अवतार तो मनुष्य के अतिरिक्त मछली, कछुआ, हंस, सर्प, सिंह, वाराह, अश्व आदि अनेक योनियों के रूप में होते रहता है, यह उनकी इच्छा एवं अवतार के उद्देश्य का विषय है कि कब कौन सा स्वरूप धारण करेंगे। आपलोग जैसी अनर्गल शंका करते हैं, उससे स्पष्ट है कि कभी वास्तव में शंका समाधान हेतु प्रयास नहीं करते। वैसे एक बात पूछूँ ? बौद्धों का आदि ललितविस्तर ग्रंथ यह क्यों कहता है कि बुद्धावतार केवल ब्राह्मण या क्षत्रिय कुल में ही हो सकता है ?