प्रश्न ०४ – पौराणिक कथाओं में सभी देवी देवताओं की दिनचर्या का वर्णन है, जैसे कि कब पार्वती ने चंदन से स्नान किया, कब गणेश के लिये लड्डू बनाये, गणेश ने कैसे लड्डू खाये.. आदि। लेकिन जैसे ही ग्रंथों की स्क्रिप्ट खत्म हो गयी, भगवानों की दिनचर्या भी खत्म… तो क्या बाद में सभी देवी देवताओं का देहांत हो गया ? अब वो कहाँ है ? उनकी औलादें कहाँ है ?
हिन्दू धर्म पर लगे वामपंथी आरोपों का उत्तर
उत्तर ०४ – पहली बात तो यह कि पुराणों में किसी की “दिनचर्या” का वर्णन नहीं है। पुराणों में ही पुराणों के लक्षण और परिभाषा बताई गई है, पुराणों के एक, पांच एवं दस लक्षण होते हैं।
एक लक्षण में – कल्याणकारी मार्ग का उपदेश है।
पञ्चलक्षणों में – सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर, वंशानुचरित का स्थान है।
दस लक्षणों में – सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति एवं आश्रय का स्थान आता है।
चूंकि सर्वाधिक प्रसिद्ध पांच लक्षण ही हैं, इसीलिए उनका सामान्य परिचय दे देता हूँ। शास्त्रों के नानाविध विषय एवं रहस्य कोई संस्थान बना लेने से, आधुनिक पढ़ाई करके शोध विद्यार्थी या पीएचडी करने से, अथवा समितियों से सम्मानित होकर नहीं गम्य होते। कोई परिवार, समाज, परिषद्, संघ या समिति बनाने से भी शास्त्रों का संरक्षण नहीं होता। मूल परम्परागत आचार्यपीठ एवं शिष्यबल का संरक्षण एवं संवर्धन किये बिना कोई आधारभूत लाभ नहीं हो सकता है।
अनुवादों की वर्तमान शैली ने मूल परिभाषा एवं धारणा को विकृत करने का अक्षम्य अपराध किया है। गूगल से माइथोलॉजी का अर्थ पूछो तो पौराणिक बताता है। हमारे शास्त्रों से पूछो तो सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित के वर्णन से युक्त ग्रंथों को पुराण कहते हैं, ऐसा बताते हैं। इसी को यदि अलग-अलग देखें तो आंग्ल में Origin of Universe, Expansion of Universe, Origin of Life, Systematic division of Time with Theory of Relativity, Chronological order of Events and History आदि के समकक्ष कह सकते हैं।
अंग्रेजी में पढ़कर कितना उन्नत और वैज्ञानिक लगा न ? जबकि संस्कृतनिष्ठ हिंदी में लगा होगा कि पता नहीं क्या क्या कह दिया। संस्कृतनिष्ठ हिंदी में कहें तो अंधविश्वास और माइथोलॉजी लगती है किंतु अंग्रेजी में कहें तो वैज्ञानिक लगता है, यही हमारे समाज की शिक्षित मूर्खता का प्रमाण है। मैं समझ नहीं पाता कि माइथोलॉजी में पौराणिक क्या है एवं पुराणों में माइथोलॉजी क्या है। दो नितांत भिन्न विषय एवं सन्दर्भों का पर्याय रूप में प्रयोग करने का उद्देश्य मात्र सनातनी समाज को सनातनी ज्ञान एवं गौरव से घृणास्पद रीति के द्वारा वंचित रखना ही है।
अब दूसरी बात, पुराणों के संस्करण प्रत्येक ४३,२०,००० वर्ष में, द्वापरांत के समय, किसी योग्य देवतुल्य विद्वान् को वेदव्यास के पद पर स्थापित करके नवीनीकृत किये जाते हैं, जिनमें कुछ पाठभेद के साथ अलग अलग कल्पों का वर्णन होता है। किस कल्प में क्या क्या हुआ, पूरी दिनचर्या का एक एक विवरण, एक एक बात का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। भविष्य पुराण का मत है कि कल्पों के विस्तार और एक एक का हिसाब असंभव है। कल्प की क्षमता ब्रह्मा के एक दिन के बराबर है। आप ठीक ठीक बता सकते हैं कि आपके पूरे जीवन में कौन सी घटना ठीक किस दिन हुई थी ? नहीं न … केवल मुख्य मुख्य बातों की तिथि बता सकते हैं। किंतु ९० प्रतिशत के विषय में केवल घटना बता पाते हैं, दिन नहीं। वैसे ही ब्रह्मा के एक एक दिन यानी कल्प में हिसाब नहीं रखे जाते।
केवल मुख्य मुख्य कल्पों के बात उल्लिखित हैं। वैसे भी सौ करोड़ रामायण एवं सौ करोड़ पुराण संहिता में पृथ्वीलोक को मात्र आठ दस लाख तक मिले हैं। हज़ार में बस एक रुपया। तो एक एक बात पृथ्वी वालों को बताई नहीं जा सकती, क्योंकि उनकी क्षमता और अधिकार उतने का नहीं है। सरकार जब बजट निकालती है तो केवल रकम बताती है, एक एक नोट का नंबर नहीं बताती। जब हम अपने इस क्षुद्र जीवन की सामान्य घटनाओं में एक एक दिन का हिसाब नहीं बता सकते तो गूढ़ लीलाओं का एक एक कल्प का हिसाब कैसे रखेंगे ? वर्तमान ब्रह्मा के ही जीवन में अभी तक छत्तीस हज़ार कल्प बीत चुके हैं। उनके नामों तक की गणना सम्भव नहीं है, घटनाओं की बात तो दूर है। मैंने अनेकानेक ग्रंथों के शोध से अभी तक मात्र तीन चार सौ कल्पों के नाम खोजे हैं। केवल वर्तमान ब्रह्मा के भुक्त कल्पों में से मात्र एक प्रतिशत के नाम …
पूर्वकाल में भी देवता ऐसे सड़क पर घूमते नहीं रहते थे। उस समय भी केवल तपोबल से युक्त अधिकारी को ही उनके दर्शन होते थे। तो देवताओं की स्थिति आज भी वही है, तो पहले थी। पूर्वकाल में लोग अधिक संस्कार और सद्गुणों से युक्त होते थे इसीलिए देवताओं के साक्षात्कार का लाभ बहुतों को मिलता था। अब इसका अभाव हो गया है, ऐसे लोगों की संख्या कम हो गयी है, इसीलिए देवताओं के प्रत्यक्ष सानिध्य का लाभ गिने चुने महात्माओं को ही मिलता है। देवता भी हैं और दैत्य भी। दैत्यों की औलादें आज भी धर्म पर प्रहार कर रही हैं, एवं देवताओं की औलादें उनका प्रत्युत्तर दे रही हैं।