प्रश्न ०७ – अगर हिन्दू धर्म कई हज़ार साल पुराना है, तो फिर भारत के बाहर इसका प्रचार-प्रसार क्यों नहीं हुआ और एक भारत से बाहर के धर्म “इस्लाम-ईसाई” को इतनी मान्यता कैसे हासिल हुई ? वो आपके अपने पुरातन हिन्दू धर्म से ज़्यादा अनुयायी कैसे बना सका? हिन्दू देवी-देवता उन्हें नहीं रोक रहें ?
उत्तर ०७ – यह आपका एक और भ्रम है। सनातनी ग्रंथों के अनुसार हमारे धर्म का अस्तित्व कुछ चंद हज़ार वर्षों का नहीं, अपितु ब्रह्मांडीय स्तर पर अनादि और अनंत है, इसीलिए बाकियों के समान इसका निश्चित प्रवर्तक ज्ञात नहीं होता। हमारे ग्रंथों में यह कब से प्रारम्भ हुआ, किसने चलाया, कब तक चलेगा, ये सब बातें नहीं हैं। यह “है”, बस इतना ही है। हिन्दू धर्म को जानने के लिए विशेष प्रज्ञा का होना आवश्यक है, जो अत्यंत परिश्रम और पुण्यबल से ही सम्भव है। जो देश तीन चार सौ वर्ष पहले तक ढंग से कपड़े पहनना, साफ सफाई रखना एवं खेती करना भी नहीं जानते थे, वे हिन्दू धर्म के विषय में बताए जाने पर भी कैसे समझेंगे ?
आपके बताए गए ईसाई-इस्लाम आदि के उदाहरण में ही आपका उत्तर निहित है। हिन्दू धर्म में तलवार के भय या धन के प्रलोभन से सदस्य नहीं बनाए जाते हैं। कुरान और बाइबल के नाम पर करोड़ों लोगों को पिछले दो हज़ार वर्षों में मार दिया गया, जिसे जिहाद कहते हैं, क्रूसेड कहते हैं। हिंदुओं ने तलवार के दम पर अपने सदस्य बढ़ाने के लिए करोड़ों गैर हिंदुओं को कब मारा ? क्या कहते हैं उस नरसंहार को ? हमारे यहां तो रामायण एवं महाभारत के युद्ध में भी दोनों पक्ष हिन्दू धर्म वाले ही थे। भय और लोभ से यदि म्लेच्छ देशों में किसी मान्यता के अधिक सदस्य बन गए तो इससे उनकी श्रेष्ठता सिद्ध नहीं हो जाती। संसार में रोगियों की संख्या अधिक है, चिकित्सकों की कम, किन्तु महत्व चिकित्सकों का ही है। वैसे ही अधर्म को मानने वालों की संख्या अधिक है, धार्मिकों की कम, किन्तु महत्व धार्मिकों का ही है।
देवी देवताओं को कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनानी है कि वे अपनी सदस्यता बढ़ाने में लगे रहेंगे। यदि रात्रि को अन्धकार फैल रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं कि सूर्य की क्षमता समाप्त हो गयी। इसका अर्थ यह है कि सूर्य तो पहले जैसा ही है, किन्तु पृथ्वी का ही भाग विशेष सूर्य से विमुख हो गया है। सूर्य के सम्मुख होते ही अन्धकार पुनः दूर हो जाएगा। वैसे ही धर्म से विमुख लोग कलियुग में अधिक होंगे, ऐसे स्वाभाविक युगधर्म की घोषणा तो हजारों वर्षों पहले ही ग्रंथों में कर दी गयी थी। पुनः धर्म के सम्मुख होने से पाप का नाश होगा, यह बात भी सहज रूप से सिद्ध है।
प्रश्न ०८ – अगर हिन्दू धर्म के अनुसार एक जीवित पत्नी के रहते, दूसरा विवाह अनुचित है, तो फिर राम के पिता दशरथ ने चार विवाह किस नीति अनुसार किये थे ?
उत्तर ०८ – ऐसा कोई सर्वमान्य नियम तो सनातन धर्म में नहीं है, कि एक ही पत्नी हो, किन्तु एकपत्नीव्रती को विशेष सम्मान दिया जाता है और आदर्श के रूप देखा जाता है। उसे विशेष पुण्यबल की प्राप्ति भी होती है। यज्ञादि से पूर्व के पुण्याहवाचन में हमलोग विशेष रूप से अरुंधतिपति वशिष्ठ आदि एकपत्नीव्रत का पालन करने वालों के नाम से अर्चना निवेदित करते हैं, किन्तु बहुविवाह वालों के लिए नहीं।
राजाओं और प्रजापति श्रेणी के देवताओं को विवाह में छूट है।राजागण वैवाहिक सम्बन्धों से राजनीतिक गठबंधन भी करते, साथ ही अनेकों राजघरानों से सम्बन्ध होने पर विपत्ति में राष्ट्र अकेला नहीं पड़ता था। कश्यप आदि प्रजापतियों को इसीलिए छूट है क्योंकि उनका कार्य ही सृष्टि के प्रारम्भ में जनसंख्या को बढ़ाना है। वैसे आपको बता दूं कि अनेक पद्मपुराण, बृहद्धर्म पुराण और रामायणों में राजा दशरथ की तीन, चार और अधिकतम साढ़े सात सौ पत्नियों का उल्लेख भी है, जो अलग अलग कल्पों में हुए। वैसे तुम्हें कभी उन लोगों पर भी प्रश्न करना चाहिए, जो पहले से तेरह शादी करने के बाद भी, बुढ़ापे में, ६ वर्ष की बच्ची से शादी कर लेते हैं।