प्रश्न ०९ – अगर शिव के पुत्र गणेश की गर्दन शिव ने काट दी, तो फिर यह कैसा भगवान् है, जो उस कटी गर्दन को उसी जगह पर क्यों नहीं जोड़ सका ? क्यों एक निरपराध जानवर (हाथी) की हत्या करके उसकी गर्दन गणेश की धड़ पर लगाई ? एक इंसान के बच्चे के धड़ पर हाथी की गर्दन कैसे फिट आ गयी ?
उत्तर ०९ – यदि आपने श्रद्धा से ग्रंथों को पढ़ा होता तो जानते कि पुराणों में केवल गणेश जी के मस्तक कटने की ही बात उल्लिखित नहीं है, और भी कई घटनाएं हैं, जिन्हें या तो अज्ञानता से, या जानबूझकर आपने अनदेखा किया है।
भगवान् शिव, जिनका विशेष प्रभाव मृतसंजीवन का ही है, उनके लिए गणेश जी को पुनर्जीवित करना कठिन नहीं था। किंतु पूर्वकाल में एक हाथी ने देवत्व एवं सर्वज्ञता का वरदान मांगा था, जो पशुदेह में सम्भव नहीं था, इसीलिए उसके मस्तक को गणेश जी के मस्तक के स्थान पर लगाया गया।
दूसरी बात, वह हाथी निरपराध नहीं था, वह मार्ग में उत्तर दिशा की ओर मस्तक करके सो रहा था, और मार्गशायी एवं उत्तरशायी के प्राणों का अधिकारी देवता होते हैं, इसीलिए उसके मस्तक को देवतागण ले गए। हाथी का ही मस्तक इसीलिए भी लगाया गया क्योंकि ब्रह्म की पञ्चशक्तियों में अनुग्रह नाम वाली शक्ति के स्वामी गणपति होते हैं, जिसका अथर्ववेदोक्त अनादि स्वरूप हाथी के मस्तक वाला ही है, किन्तु भौतिक अवतार में इसका अभाव था जिसे संशोधित करना आवश्यक था। वे कोई “इंसान” के बच्चे नहीं थे जिनके साथ ऐसा न हो सके। देवताओं में अपनी दिव्य शक्ति से इच्छानुसार रूप व्यवस्थापन की क्षमता होती है। एक ओर आप कहते हैं कि शिव जी कैसे भगवान् थे, दूसरी ओर आप कहते हैं कि गणेश जी “इंसान” के बच्चे थे !! इंसान में भले आजकल की तकनीक से यह सम्भव नहीं हो, देवताओं के स्तर पर सम्भव है।
इतने के बाद भी शिव जी ने बाद ने उस हाथी को भी पुनर्जीवित कर दिया था, जिसका वर्णन भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड ४ के अध्याय १२ में है।
शिव जी ने स्वयं ब्रह्म होते हुए भी गणेश जी के साथ जो क्रोध में कृत्य किया उसके लिए स्वयं ही अपना दण्ड निर्धारित भी किया, क्योंकि देवता स्वयं भी धर्म की मर्यादा का पालन करते हैं।
तदा त्वया समं तात पुरे शोणितसंज्ञके।
संग्रामः सुमहानेव भविष्यति सुनिश्चितम्॥
तत्राहं सर्वलोकस्यस पश्यतस्तद्रणाजिरे।
सशूलस्तंभितोऽवश्यं भविष्यामि त्वयैव हि॥
(महाभागवत उपपुराण, अध्याय – ३५, श्लोक – ३०-३१)
शिव जी ने भगवान् विष्णु से कहा कि (इसी कृत्य के प्रायश्चित्त हेतु) भविष्य में कृष्णरूप से शोणितपुर में बाणासुर के साथ जब आपका युद्ध होगा, तब मैं आपके विरुद्ध लड़ते हुए शस्त्रसहित स्तम्भित हो जाऊंगा, पराजित हो जाऊंगा।
प्रश्न १० – अगर हिन्दू धर्म में मांसाहार वर्जित है, तो फिर राम स्वर्णमृग (हिरण) को मारने क्यों गए थे ? क्या मृग हत्या जीव हत्या नहीं है ?
उत्तर १० – भगवान् जानते थे कि या हिरण नहीं, मारीच नाम का राक्षस है, इसीलिए उस राक्षस का वध करने ही गए थे। बिना गए भी मार सकते थे किन्तु फिर सीताहरण का प्रसङ्ग कैसे होता, बाकी सारी घटनाओं के अभाव में रावणवध का उद्देश्य पूरा नहीं होता।
मायैषा राक्षसस्येति कर्तव्योऽस्य वधो मया॥
एतेन हि नृशंसेन मारीचेनाकृतात्मना ।
वने विचरता पूर्वम् हिंसिता मुनिपुंगवाः॥
(वाल्मीकीय रामायण, अरण्यकाण्ड, अध्याय – ४३, श्लोक – ३९)
रामजी ने लक्ष्मण से कहा – ये इस राक्षस की माया है, जिसका वध करना मेरा कर्तव्य है। इसी निर्दयी मारीच के द्वारा पूर्वकाल में अनेकों मुनिश्रेष्ठ मारे गए हैं।