प्रश्न ११- राम अगर भगवान् है, तो फिर उसको यह क्यों नहीं पता था कि रावण की नाभि में अमृत है ? अगर उसको घर का भेदी न बताता कि रावण की नाभि में अमृत है, तो उस युद्ध में रावण कभी नहीं मारा जाता। क्या भगवान् ऐसा होता है ?
उत्तर ११ – ये घटना कैसे जानते हो तुम ? देखने तो गए नहीं थे !! निश्चय ही किसी रामकथानक सम्बन्धी ग्रंथ में पढ़ा होगा !! तो तुम्हें थोड़ा और आगे पढ़ना चाहिए था, कि कैसे युद्ध के बाद भगवान् तो समस्त वानर सेना को जीवित करा दिया था। जो इच्छानुसार मृत्यु और जीवन पर नियंत्रण करे, भगवान् ऐसा होता है। अथवा उतनी दूर तक न भी पढ़ा होगा तो समुद्रबन्धन के प्रसङ्ग के बाद ही लंका के युद्ध तक पहुंचे होंगे। तो समुद्र ने श्रीराम जी की स्तुति में भयभीत होकर जो कहा था उसे पढ़ने के बाद तुम्हें ज्ञात हो जाता कि भगवान् कैसे होते हैं। यदि इन बातों पर तुम्हें विश्वास नहीं तो फिर नाभिअमृत की बात पर इतना विश्वास क्यों कर रहे हो ? केवल धर्म को गाली देने के लिए ?
भगवान् केवल दुष्टों मारते नहीं हैं, लोकमर्यादा की रक्षा भी करते हैं। विभीषण जी उनके मंत्री थे, शत्रु के भेद जानते थे। रामजी ने यह दिखाया कि एक कुशल राजा को सदैव अपने मंत्रियों से परामर्श करके ही समाधान निकालना चाहिए !!
विभीषण जी घर के भेदी नहीं थे। वे रावण को धोखा देकर नहीं भागे थे। उन्हें स्वयं रावण ने लात मार कर अपमानित किया और कहा कि राम के पास चले जाओ। विभीषण की कल्याणकारी बात रावण के स्वार्थबुद्धि में समाहित नहीं हो रही थी, इसीलिए रावण ने अपने अहंकार में ऐसा किया था। विभीषण जी ही केवल रावण को समझा रहे थे, ऐसा नहीं है। मन्दोदरी, प्रहस्त, माल्यवान्, पुलस्त्य, कुम्भकर्ण, और उनसे पहले मारीच, जटायु आदि कितनों ने रावण को अनेकों प्रकार से समझाया था।
विभीषण जी को बिना मांगे ही, रामजी ने लंका का राजा बना दिया था। अब लंका के राजा विभीषण थे। रावण तो केवल सिंहासन पर कब्जा करके बैठा था और बैठकर निरपराध स्त्रियों का अपहरण करके बलात्कार करता था। विभीषण जी ने उसके अत्याचार को चुनौती देते हुए श्रीरामकृपा से उसकी सत्ता नष्ट की और स्वयं धर्मपूर्वक शासन को आगे बढ़ाया। तुम्हें गणेश जी के प्रसङ्ग में हाथी निरपराध दिखता है, फिर बलात्कारी रावण के शिकार में फंसी निरपराध स्त्रियां क्यों नहीं दिखती हैं ?
प्रश्न १२ – तुम कहते हो कि कृष्ण तुम्हारे भगवान् हैं, तो क्या नहाती हुई निर्वस्त्र गोपीयों को छुपकर देखने वाला व्यक्ति, भगवान् हो सकता है ? अगर ऐसा काम कोई व्यक्ति आज के दौर में करे, तो हम उसे छिछोरा-नालायक कहते हैं। तो आप कृष्ण को भगवान क्यों कहते हो ?
उत्तर १२ – इसका उत्तर दो बिंदुओं में समझाता हूँ।
१) भगवान् कृष्ण का यह दैनिक कार्य नहीं था कि जहां स्त्रियां नहा रही हों, वहां जानकर छिप कर देखते हैं। उन्होंने बस एक बार, गोपियों को यह शिक्षा देने के लिए, कि निर्वस्त्र होकर जलाशय में नहीं स्नान करना चाहिए, उनके वस्त्रों को छिपा दिया था। उस समय गोपियों एवं श्रीकृष्ण की भौतिक आयु पांच-सात वर्ष की ही थी। ऐसे में उनमें सांसारिक दृष्टि से भी दोषबुद्धि अव्यावहारिक है।
२) माहेश्वर तन्त्र, आनंद रामायण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्मपुराण आदि के अनुसार पूर्वकाल के अनेक अप्सरा, ऋषिगण एवं वेद की ऋचाओं का ही गोपिरूप में प्राकट्य हुआ था क्योंकि वे भगवान् की लीला का सौभाग्य प्राप्त करना चाहते थे। वस्त्र हरण की घटना के समय भी वे गोप बालिकायें श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कात्यायनी व्रत का अनुष्ठान कर रही थीं और इस कारण भी भगवान् कृष्ण का उनसे पतिभाव होने के कारण दोषबुद्धि उचित नहीं है।